एवरेस्ट फतह करने वाले निम-जिम के संयुक्त दल के सदस्यों से मिले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, झुंझुनूं के सोलाना निवासी अनिल धनखड़ भी है दल के सदस्य | JHUNJHUNU NEWS

एक जून को निम-जिम के संयुक्त दल ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रिंसिपल कर्नल अमित बिष्ट की अगुवाई में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट का सफल आरोहण किया था। निम और जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड विंटर स्पोर्ट्स का छह सदस्यीय संयुक्त दल ने सुबह 6.20 बजे एवरेस्ट शिखर पर पहुंचा था। झुंझुनूं जिले के सोलाना निवासी हवलदार अनिल धनखड़ एवरेस्ट फतह करने वाले इस दल के सदस्य थे।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक जून को एवरेस्ट शिखर पर सफल आरोहण करने वाली विश्व विख्यात नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम), उत्तरकाशी और जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड वाटर स्पोर्ट्स, पहलगाम के सदस्यों से मुलाकात की। नई दिल्ली में आयोजित फ्लैग इन सेरेमनी के दौरान रक्षा मंत्री को ‘आइस एक्स’ सौंपा गया। रक्षा मंत्री को इस संयुक्त अभियान की जानकारी भी दी गई।

एक जून को निम-जिम के संयुक्त दल ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रिंसिपल कर्नल अमित बिष्ट की अगुवाई में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट का सफल आरोहण किया था। निम और जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड विंटर स्पोर्ट्स का छह सदस्यीय संयुक्त दल ने सुबह 6.20 बजे एवरेस्ट शिखर पर पहुंचा था। इस दल में एनआईएम के प्रिंसिपल कर्नल अमित बिष्ट, हवलदार अनिल धनखड़, दीप बहादुर शाही और जिम के हवलदार इकबाल खान, हवलदार चंदर नेगी और महफूज इलाही शामिल थे।
17 साल की उम्र में बना फौजी, अब फतेह किया एवरेस्ट
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के गांव सोलाना निवासी सेना में हवलदार अनिल धनखड़ ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया है। खास बात यह है कि अनिल मात्र सत्रह साल की उम्र में सेना में नौकरी लगा । जानकारी के अनुसार सोलाना निवासी तथा उत्तराखंड में कार्यरत सेना में हवलदार अनिल धनखड़ पुत्र विद्याधर ने उत्तर काशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेरिंग से फाइनल ट्रेनिंग के बाद एक अप्रेल को काठमांडू से बेस कैंप के लिए रवाना हुए। आठ अप्रेल से सात दिन तक वातावरण के अनुकूल ढालने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी गई। 20 अप्रेल को लबूचेय चोटी 6 हजार 119 मीटर को पार किया। 21 मई को समय अभाव और खराब मौसम के चलते सीधे बेस कैंप से कैंप-2 पहुंचे। 24 से 28 मई तक तेज हवाओं, बर्फबारी के कारण 29 मई को 150 से ज्यादा पर्वतारोही वापस लौट आए। मगर अनिल और उनकी टीम ने हिम्मत नहीं हारी। 30 तारीख को कैंप-3 में बिना रुके सीधे ही कैंप-4, साउथ कॉल पहुंच गए। 31 मई को रात आठ बजे अंतिम पड़ाव के लिए रवाना हुए। एक जून को सुबह साढ़े छह बजे एवरेस्ट को फतह किया। 

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खराब मौसम ने रोकी राहें
एवरेस्ट पर पहुंचने से पहले कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। करीब 27 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद अचानक मौसम खराब हो गया। तेज तूफानी हवाओं ने सफर को रोक दिया। ऐसे में अनिल व उनके साथियों को वापस बेस कैंप-2 में लौटना पड़ा। जहां मौसम खुलने के बाद वापस चढ़ाई शुरू की।
17 साल की उम्र में बना फौजी
पर्वतारोही अनिल धनखड़ महज 17 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे। अनिल ने 2009-10 में गुलमर्ग से पर्वतारोहण का कोर्स किया। जिसके बाद 2010 से 2017 तक गुलमर्ग में ही इंस्ट्रेक्टर के तौर पर सेवाएं दी।
2011 में पहली बार पर्वतारोहण
अनिल ने पर्वतारोहण का अभियान 2011 में शुरू किया। जिसमें पहली बार 5 हजार 420 मीटर ऊंची मचोई चोटी पर चढ़ाई की। वर्ष 2013 में त्रिशूल चोटी सात हजार 120 मीटर, 2016 में हरमुख चोटी 5 हजार 660 मीटर, 2019 में दूसरी बार त्रिशूल चोटी, 2019 में ही मुम्बा चोटी 5 हजार 236 मीटर पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। उन्होंने 2017 में कठिन कमांडो ट्रेनिंग कोर्स भी पूर्ण किया।
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