
जैसलमेर के जालोड़ा- पोकरण गांव में बारिश के लिए किसान और गांव वाले सदियों पुरानी परम्परा मनाते हुए अनूठी मन्नत मांगते हैं। इसके लिए गांव के बच्चे व युवक इकट्ठे होकर हर घर से राशन का सामान मांगते हैं फिर एक जगह इकट्ठे होकर उस सामान से भोजन बनाते हैं तथा उसको छोटे बच्चों और जीव जंतुओं को खिलाते हैं। इससे इनका मानना है कि इनकी दुआ से ईश्वर खुश हो जाएगा और इलाके में बारिश हो जाएगी। इस सदियों पुरानी परंपरा को बड़ा ही विचित्र नाम दिया गया है डेडरिया यानी मेंढक। गांव वालों का मानना है कि इस तरह से वे बारिश नहीं होने पर डेडरिया परंपरा मनाते हैं और ईश्वर उन पर मेहरबान होकर बारिश कर देता है। इस तरह ये परंपरा हमारे यहां सदियों पुरानी है। हालांकि अभी इनका चलन बंद हो गया है लेकिन फिर भी गांव के युवकों ने इस बार इस परंपरा को निभाया है जो अच्छी बात है।

डेडरिया परंपरा के तहत लापसी, खीर, गेंहू, बाजरे की गुगरी बना कर छोटे बच्चों को भोजन कराते युवक।
क्या है डेडरिया
पश्चिमी राजस्थान में ऐसी कई परंपराएं रही हैं जो अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। हालांकि डेडरिया का भी इसका प्रचलन बहुत ही कम हो गया है। लेकिन जालोड़ा- पोकरण गांव में एक बार फिर से सदियों पुरानी ये रीति रिवाज देखकर लोगों के चेहरे खिल उठे हैं। गांव वालों ने बारिश की कामना के लिए मिलकर सदियों पुरानी परम्परा को फिर से दोहराया है। गांव के ही मेरदीन कलर बताते हैं कि इलाके के ग्रामीण हर घर से अनाज इकट्ठा कर एक निश्चित जगह पर डाल देते हैं, इसे डेडरिया कहा जाता है। उन्होंने बताया कि डेडरिया एक मारवाड़ी शब्द है जिसको हिंदी में मेंढक कहते है। जैसे दूसरी जगह बारिश की आहट होते ही मेंढकों की उछल कूद शुरू हो जाती है ठीक वैसे ही अगर किसी कारणवश गांव में बारिश नहीं होती है तो किसान बारिश की कामना के लिए अपने इलाके के गांव ढाणियों के हर घर से अनाज मांग कर इकट्ठा करते है। इनमें लापसी, खीर, गेंहू, बाजरे की गुगरी बना कर छोटे बच्चों और जीव जंतुओं को भोजन कराते हैं और बारिश कि मन्नत मांगते हैं। इससे इनका मानना है कि इनकी दुआ से ईश्वर खुश हो जाएगा और इलाके में बारिश हो जाएगी। इसे ही डेडरिया कहा जाता है।
बारिश के लिए मांगी मन्नत
जैसलमेर के जालोड़ा-पोकरण गांव के युवकों ने अपनी सदियों पुरानी परम्परा को एक बार फिर से दोहराते हुए अपने गांव में डेडरिया का आयोजन किया। गांव के युवाओं ने घर-घर जाकर गाय का देसी घी, गेंहू, शकर मांग-मांग कर इकट्ठा किए फिर लापसी, खीर बना कर बांटे। इस मौके पर गांव के ही निवासी मेरदीन कलर ने अपने साथियों सलीम कलर, शौकत कलर, आरब कलर, उमर, फारूक, सिकंदर कलर, आरिफ कलर और रईस कलर के साथ मिलकर राशन इकट्ठा किया और ईश्वर से बारिश के लिए मन्नत मांगी।