अपनी मिट्टी से लगाव और समर्पण का उदाहरण देखना हो तो झुंझुनूं के गांव सीगड़ी आइए। जाने-माने गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा करोड़पति फकीर के नाम से भी मशहूर हैं। हमेशा उत्साह से लबरेज रहने वाले डॉ. वर्मा बालिका शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के दूत के रूप में सामने आए हैं। ये हर वर्ष अपनी पेंशन से 50 लाख रुपए बालिका शिक्षा पर खर्च करते हैं। अब तक ये 10 करोड़ रुप खर्च कर चुके हैं। अमेरिका में भले रहते हैं, लेकिन उनका जुड़ाव अपनी मातृभूमि से अभी भी बना हुआ है। ये हर वर्ष 3 माह के लिए अपने गांव आते हैं।
खुद कमाकर की पढ़ाई पूरी
वर्ष 1950 में गणित से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उनको पहली तनख्वाह के रूप 100 रुपए मिले। नौकरी मिलने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस दौरान उन्होंने एमए और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की। उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद जून 1958 में अमेरिका से बुलावा आया। न्यूयार्क के किंगस्टन शहर के रोडे आइलैंड यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दीं। उस समय उन्हें 400 डॉलर तनख्वाह मिलती थी।
सिर्फ महिला शिक्षा पर जोर
डॉ. घासीराम वर्मा करीब 20 वर्ष पूर्व रिटायर हो चुके हैं। हर वर्ष पेंशन व नियमित निवेश से उनको करीब 68 लाख रुपए मिलते हैं। इनमें से 50 लाख रुपए वे हर वर्ष भारत आकर बालिका शिक्षा पर खर्च करते हैं। खास बात ये है कि वे किसी को कोई व्यक्तिगत मदद नहीं करते हैं बल्कि बालिका शिक्षा के लिए ही राशि खर्च करते हैं।
संघर्ष भरा रहा पढ़ाई का जीवन
उनका पढ़ाई का जीवन संघर्ष भरा रहा। उनके गांव में उस समय पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं थी। स्कूल घर से करीब पांच किमी दूर था। लेकिन उनमें पढऩे की ललक थी। वे पढ़ाई में भी बहुत होशियार थे। इसी के बलबूते पर उनको स्कॉलरशिप मिली। इसके बाद पढाई का उनका सफर आसान होता गया।
गांववाले इसलिए बोलते हैं करोड़पति फकीर
इन्हें करोड़पति फकीर इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे अपनी कमाई का लगभग पूरा हिस्सा बालिका शिक्षा पर खर्च कर देते है। सिर्फ खर्चे के लिए रुपए बचा कर रखते हैं। दूसरा कारण ये है कि इनके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। छात्रवृति के पैसों से ही पढ़ाई पूरी की थी।