#Jhunjhunu #झुंझुनूं के लाल ने दुनियां की चौथी सबसे ऊंची चोटी पर लहराया तिरंगा

#Jhunjhunu #झुंझुनूं के लाल ने दुनियां की चौथी सबसे ऊंची चोटी पर लहराया तिरंगा
लाओत्से शिखर पर तिरंगा लहराते हुए सुमित सोमरा। - Dainik Bhaskar

हौसले और दृढ़ता की ये कहानी है केंद्रीय सशस्त्र बल के जवानों की…। इनमें शामिल मोई पुरानी के सुमित सोमरा ने दुनिया की चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट लाओत्से पर तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया है। यह उपलब्धि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के दो अन्य साथियों के साथ हासिल की।

मोई पुरानी के सुमित सोमरा पुत्र रणजीत सोमरा सीआईएसएफ में उप निरीक्षक हैं। तीन सदस्य दल में आईटीबीपी के आरएस सोनल व बीएसएफ के सुरेश छेत्री भी शामिल रहे। इन्होंने रविवार सुबह साढे आठ बजे लाओत्से की 8516 मीटर ऊंचाई पर कदम रखा और तिरंगा लहराया है।

लगा जैसे मौत के नजदीक खड़े हैं, लेकिन फिर सोचा-अभी नहीं तो कभी नहीं…
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के तीन सदस्यीय दल ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई 11 अप्रैल को काठमांडू से शुरू की थी। सुमित के अनुसार नौ दिन की लंबी ट्रैकिंग के बाद 24 अप्रैल को एवरेस्ट बेस कैंप पहुंच गए थे। यहां से दो मई को चढ़ाई शुरू की और आठ मई को एवरेस्ट कैंप-1 के लिए रवाना हुए। नौ मई को कैंप-2 पहुंच गए और 10 मई को कैंप-3 पहुंच गए। कैंप-3 की ऊंचाई 7300 मीटर है।

यहीं पर दो पर्वतारोहियों की मौत हो गई। इनमें एक स्विटजरलैंड का और दूसरा अमेरिका का था। 11 मई की सुबह एक शेरपा की गहरी खाई में गिरने से मौत हो गई थी। इन घटनाओं के बाद हम सहित सभी पर्वतारोही वापस बेस कैंप आ गए और अच्छे मौसम का इंतजार करने लगे। इस दौरान मौसम खराब होता रहा। साइक्लोन ताऊ ते का असर स्पष्ट दिख रहा था।

ऐसे में 21 मई तक यहीं रहे। 21 मई को फिर चढ़ाई शुरू की। रात एक बजे बेस कैंप से निकले और 22 मई को कैंप-3 पर पहुंच गए। 22 मई की रात हम 7300 मीटर की ऊंचाई पर थे, माइनस 45 डिग्री तापमान और 40 किमी प्रति घंटा रफ्तार की हवा चल रही थी।

सभी लोग वापस बेस कैंप चले गए, लेकिन हम वहीं रहे। सोचा-अभी नहीं तो कभी नहीं…ये आखिरी मौका है। फिर पता नहीं कब मौसम ठीक होगा और कब दोबारा मौका मिलेगा। उस समय हम कैंप-3 पर थे। कठिनतम मौसम के बावजूद हमने चढ़ाई जारी रखने का संकल्प लिया और उसी रात हम आगे बढ़ने लगे। हमने कैंप-4 को बाइपास किया।

इस दौरान मन में कई तरह के निगेटिव विचार आते रहे। ऑक्सीजन खत्म नहीं हो जाए, रेगुलेटर खराब नहीं हो जाए और तूफान में नहीं फंस जाएं…आदि। लेकिन दृढ़ संकल्प के चलते माइनस 45 डिग्री तापमान और 40 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चल रही हवाओं का सामना करते हुए 23 मई की सुबह 8.30 बजे हम लाओत्से शिखर पर पहुंच गए।

सात साल के थे, तभी सिर से उठ गया था पिता का साया
सहकारिता विभाग के पूर्व निरीक्षक सत्यवीर सोमरा ने बताया कि सुमित सोमरा के सिर से पिता का साया बाल्यावस्था में ही उठ गया था। वे तब सात साल के थे। उनकी परवरिश उनके ताऊ सत्यवीर ने की। कंम्यूटर साइंस से बीटेक करने के बाद सुमित ने ताऊ की प्ररेणा से सीआईएसएफ ज्वाॅइन की। साधारण कृषि परिवार में जन्मे सुमित ने इस उपलब्धि का श्रेय अपनी माता, ताऊ व परिजनों को दिया।

सोमरा के दुनियां की चौथी सबसे बड़ी पहाड़ी पर भारतीय तिरंगा लहराने पर गांव में खुशी की लहर दौड़ी। माकड़ो सरपंच नरेन्द्र डैला, पूर्व सरपंच महेन्द्र लूणियां, व्याख्याता शेरसिंह जेवरिया, एसीबीईओं जवाहरलाल शर्मा ने परिजनों को गांव का नाम रोशन करने पर बधाई दी।

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