Personal Loan Default: पैसों की जरूरत कभी भी बताकर नहीं पड़ती। किसी भी इंसान को, कभी भी पैसों की जरूरत पड़ सकती है। अगर अचानक पैसों की जरूरत पड़ जाए और आपके पास पैसे नहीं हैं और न ही किसी दोस्त या रिश्तेदार से पैसों का इंतजाम हो पा रहा है तो ऐसे में बैंक से लोन लेना पड़ जाता है। आमतौर पर बैंक घर खरीदने के लिए होम लोन और गाड़ी खरीदने के लिए ऑटो लोन देते हैं। बाकी जरूरतों के लिए बैंक पर्सनल लोन देते हैं। होम लोन और ऑटो लोन की तुलना में पर्सनल लोन महंगा होता है।
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पर्सनल लोन चुकाने में चूक न सिर्फ आपकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है बल्कि आपको मानसिक तनाव और कानूनी मुश्किलों में भी डाल सकती है. इसलिए अगर लोन लिया है तो उसे समय पर चुकाने की कोशिश करें और परेशानी होने पर बैंक से बातचीत करें.
पर्सनल लोन डिफॉल्टर के लिए RBI के दिशा-निर्देश
भारतीय रिजर्व बैंक पर्सनल लोन के लिए ऋण वसूली में निष्पक्ष व्यवहार को अनिवार्य करता है। लोन डिफॉल्ट के मामलों में बैंकों को आरबीआई के दिशा-निर्देशों का पालन करना पड़ता है। इसमें उधारकर्ता वसूली शुरू करने से पहले नोटिस हासिल करने के हकदार हैं। बैंकों को आरबीआई के तरफ से गाइडलाइंस में उचित और सम्मानजनक कम्यूनिकेशन करने के लिए कहा गया है। बैंकों को उत्पीड़न से बचने के लिए कहा गया है।
डिफॉल्टर होने से खराब होता है सिबिल
निश्चित तौर पर लोन को रीस्ट्रक्चर कराना आपके लिए बेहतर विकल्प है, क्योंकि ये आपके ऊपर से लोन डिफॉल्टर के टैग को हटाता है. किसी व्यक्ति का लोन डिफॉल्टर होना उसकी क्रेडिट हिस्ट्री और हेल्थ दोनों को खराब करता है. इस वजह से आपका सिबिल स्कोर भी खराब करता है, जो भविष्य में आपके लिए लोन लेने के रास्तों को बंद कर देता है.
वसूली प्रक्रिया और उससे उत्पन्न मानसिक तनाव
बैंक लोन वसूली के लिए एजेंसियों की मदद लेते हैं। इन एजेंसियों की वसूली प्रक्रिया कभी-कभी उधारकर्ता के लिए मानसिक तनाव और परेशानी का कारण बन सकती है। वसूली के दौरान एजेंसियों का दबावपूर्ण रवैया स्थिति को और जटिल बना देता है। हालांकि, RBI ने बैंकों को उधारकर्ताओं के साथ सम्मानपूर्ण और न्यायसंगत व्यवहार सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
पर्सनल लोन नहीं चुकाने पर बैंक द्वारा कार्रवाई
पर्सनल लोन न चुकाने पर, बैंक या वित्तीय संस्थान कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं. इनमें ये कार्रवाइयां शामिल हो सकती हैं:
• बैंक सिविल कोर्ट में मामला दर्ज करा सकता है.
•कोर्ट, कर्ज़ चुकाने का आदेश दे सकता है.
कोर्ट, कर्ज़ वसूलने के लिए संपत्ति जब्त करने और बेचने का आदेश दे सकता है.
•बैंक, लोन वसूली एजेंसियों को नियुक्त कर सकता है.
•बैंक, आपके क्रेडिट इतिहास पर असर डाल सकता है.
•अगर बैंक को लगे कि आपने जान-बूझकर धोखाधड़ी की है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत मामला दर्ज हो सकता है.
हालांकि, ऋण न चुकाना एक नागरिक अपराध माना जाता है, और ऐसे मामलों में आम तौर पर आपराधिक आरोप नहीं लगाए जाते. इसलिए, वास्तविक ऋण न चुकाने वालों को कारावास की सज़ा नहीं दी जाती