Baba Ramdev ji Mandir Nawalgarh लोक देवता बाबा रामदेव मेला नवलगढ़

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Ramdev Mela Nawalgarh: लगभग 500 वर्ष पूर्व स्थापित नवलगढ़ के रामदेवजी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु धोक लगाने आते हैं। यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी को लक्खी मेला शुरू होता है। इसमें 5 से 7 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। मेले के शुरू होने की एक अनूठी परम्परा है।

एक दिन पहले नवमी को राज परिवार के रूप निवास पैलेस से एक घोड़ा रामदेवजी मंदिर में आकर धोक लगाता है। घोड़े के साथ सफेद ध्वज लेकर सेवक चलते हैं। ध्वज को मंदिर के गुम्बद पर लगाया जाता है। घोड़ा आने के बाद मंदिर में बाबा की जोत के साथ मेला शुरू हो जाता है। सैंकड़ों वर्ष से यह परंपरा चली आ रही है।

बाबा रामसा पीर की जोत का अपना विशेष महत्व है।

जोत से पहले रूप निवास पैलेस से एक घोड़ा नक्कारा निशान का सफेद ध्वज लेकर मंदिर पहुंचता है। इस ध्वज को गुंबज पर चढ़ाया जाता है। घोड़ा बाबा के घोड़े लीलण की समाधि के फेरी भी देता है। पीढियों से चली आ रही परंपरा को यहां के पूर्व शासक ठाकुर नवल सिंह के परिवार के सदस्य आज भी निभा रहे हैं। रामदेव जी विशाल जोत वर्ष में दो बार ही ली जाती है। पहली जोत माघ नवमीं को ली जाती है। बाबा की विशाल जोत तंवर जाति के जो लोग रुणीचा से आकर बसे हैं वे ही ले सकते हैं। कामड जाति के लोग मौजूद रहते हैं।

इस साल 24 को आएगा घोड़ा

मेले को लेकर प्रशासनिक व्यवस्थाएं शुरू हो चुकी हैं। मेले में होने वाले फुटबॉल मैच का रोमांच भी शुरू हो चुका है। यहां तक कि झूले आदि भी लग चुके हैं और श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। इस बार 24 सितम्बर को घोड़ा धोक लगाएगा और जोत ली जाएगी। वहीं 25 सितम्बर से लक्खी मेला शुरू होगा जो करीब एक सप्ताह तक चलेगा।

248 साल से भरता आ रहा बाबा रामदेवजी का मेला

मान्यता है कि नजरबंद हुए नवलसिंह के पास रामदेवजी का घोड़ा पहुंचा। उस पर सवार होकर नवलसिंह नवलगढ़ आए और दक्षिण दिशा में स्थित जोहड़ में आकर घोड़े से उतरे। उस समय उन्हें बाबा रामदेवजी के दर्शन हुए। इसके बाद सन् 1775 में उदावती देवी ने मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। तब से ही करीब 248 सालों से बाबा रामदेवजी का मेला भरता आ रहा है। माघ मास में बाबा रामदेवजी का छोटा मेला भरता है। भाद्रपद में बड़ा मेला भरता है

नवलगढ़ में बाबा रामदेव के मंदिर निर्माण व मेले की शुरुआत को लेकर कई किवदंतियां हैं। एक कहानी ओमप्रकाश व्यास की ओर से लिखी पुस्तक ‘युगदृष्टा बाबा रामदेव के अनुसार इस प्रकार है।

-नवलगढ़ के तत्कालीन राजा नवल सिंह की रानी की लोकदेवता बाबा रामदेव में गहरी आस्था थी।

-एक बार राजा नवल सिंह बादशाह को 22
हजार रुपए का कर देने के लिए दिल्ली जा रहे थे। – हरियाणा के दादरी में उन्हें पता चला कि

चिड़ावा निवासी एक महिला कोई सगा भाई
नहीं है।

– वह भात भरने के लिए अपने चचेरे भाइयों का इंतजार कर रही थी, मगर वे नहीं आए। -लोग महिला का मजाक उड़ाने लगे। यह बात राजा नवलसिंह को पता चली तो उन्होंने भात भर दिया।

-बादशाह के कर के 22 हजार रुपए भात भरने में खर्च हो गए। इसलिए वे नवलगढ़ लौट आए।

– कर नहीं चुकाने की बात जब बादशाह को पता चली तो उन्होंने सेनापति को नवलगढ़ भेजा।

-सेनापति ने धोखे से राजा नवलसिंह को रामदेव जी को याद किया। -इसके बाद वे सो गए। कुछ देर बाद अचानक

मौसम खराब हो गया। तेज हवाएं चलने लगी। -एकाएक मौसम बदलने और सर्दी बढने से कारावास के पहरेदार अपना स्थान छोड़कर चले गए।

– हवा के झोंकों से कारावास का गेट ताले सहित गिर गया। इस पर नवलसिंह की आंख खुली।

-उन्होंने देखा कि कारवास के गेट नीचे गिरे हुए हैं । पहरेदार भी नहीं है । वे कारावास से बाहर आ गए।

-बाहर पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें एक घोड़ा खड़ा हुआ दिखाई दिया।

– वह बाबा रामदेवजी का घोड़ा था, जो उन्हें दिल्ली की कैद छुड़वाकर नवलगढ़ ले जाने आया था।

– वे घोड़े की पीठ पर सवार होकर और घोड़ा तेज रफ्तार से दौड़ता नवलगढ़ के रामदेवरा आ गया।

-उस वक्त घोड़ा नवलगढ़ में उस जगह रुका
जहां वर्तमान में बाबा रामदेव का मंदिर बना हुआ है।

-राजा ने घोड़े को अपने गढ़ में ले जाने का प्रयास किया। लेकिन घोड़ा वहां से नहीं हिला ।

-इस पर वे घोड़े को वहीं छोड़कर अपने गढ़ में पैदल ही चले गए।

– बाद में उन्होंने घोड़े को लाने के लिए अपने पहरेदारों को भेजा। लेकिन वहां घोड़ा नहीं मिला।

-वहां पर सिर्फ घोड़े के पैरों के निशान दिखाई दिए। तब उनकी भी बाबा रामदेव में गहरी आस्था हो गई।

-राजा ने नवलगढ़ में सन् 1776 में बाबा रामदेव के मंदिर का निर्माण करवाया। – मंदिर निर्माण के बाद से यहां सालाना मेला भरने की परम्परा शुरू हो गई, जो आज तक जारी है।