Karwa Chauth: करवा चौथ पर चांद कितने बजे निकलेगा? जानें पूजा-विधि व मुहूर्त, कहानी

करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैंं।आज 20 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत रखा जा रहा है। इस व्रत में सुबह जल्दी उठा जाता है।

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इस बार करवा चौथ पर शिव योग और सर्वाथ सिद्ध योग बन रहा है।इस लिए इस बार की करवा चौथ सौभाग्यशाली महिलाओं के लिए बहुत खास रहने वाली है। सुबह से व्रत कर रहे हैं, तो आपको भद्रा, सरगी खाने का टाइम, राहुकाल औक शाम की पूजा की मुहूर्त, और चंद्रमा निकलने का समय भी पता होना चाहिए।

करवा चौथ शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय


करवा चौथ पूजा मुहूर्त शाम 5:46 बजे से शाम 7:02 बजे तक 1 घंटे 16 मिनट की अवधि के लिए है। करवा चौथ पर चंद्रोदय शाम 7:54 बजे होने की उम्मीद है, लेकिन यह अलग-अलग शहरों में अलग-अलग होगा।

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कोलकाता: शाम 7.22 बजे

चंडीगढ़: 7.48 बजे

दिल्ली: 7.53 बजे

आगरा: 7.55 बजे

लखनऊ: 7.42 बजे

वाराणसी: 7.32 बजे

भोपाल: 8.07 बजे

जयपुर: 8.05

पटना: 7.29 बजे

रांची: 7.40 बजे

अहमदाबाद: 8.27 बजे

देहरादून: 7.24

शिमला: 7.47 बजे

रायपुर: 7.43 बजे

जम्मू: 7.52 बजे

करवा चौथ की पूजन विधि (Karwa Chauth 2024 puja vidhi)

पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं. इस पर गौरी मां की प्रतिमा स्थापित करें. करवा, दीपक और पूजन सामग्री भी यहां रखें. पूजा में एक कलश को जल से भरकर रखें। इस पर दीपक जलाएं. करवा पर रोली, अक्षत, सिंदूर और फूल अर्पित करें. विधिवत पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुनना या पढ़ना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.

कथा सुनते समय हाथ में जल और अक्षत लेकर बैठें. रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत का समापन होता है. चंद्रमा को जल अर्पित करें और उसे अर्घ्य दें. पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करें. चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति को जल से अर्घ्य दें. पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें.

करवा चौथ के व्रत के नियम और सावधानियां

करवा चौथ का केवल सुहागनें या जिनका रिश्ता तय हो गया है, उन्हें ही रखना चाहिए. यह व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाएगा. यह व्रत निर्जला या विशेष परिस्थितियों में जल के साथ रखा जा सकता है. व्रत रखने वाली महिलाओं को काला या सफेद वस्त्र पहनने से बचना चाहिए. आप लाल या पीला वस्त्र पहन सकते हैं. इस दिन पूर्ण श्रंगार और पूर्ण भोजन जरूर करना चाहिए.

करवा चौथ की संपूर्ण कहानी

एक साहूकार था। उसके सात बेटे थे और एक बेटी थी। वह सातों भाईयों की प्यारी बहन थी। एक साथ ही बैठकर वह खाना खाते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ आई तो उसकी बहन ने करवाचौथ का व्रत रखा। सारे भाई भोजन करने आए और अपनी बहन से बोले आ बहन तू भी खाना खा ले। उनकी मां बोली आज यह खाना नहीं खाएगी। इसका करवाचौथ का व्रत है। जब चांद निकलेगा तभी यह खाना खाएगी। तो उसके भाइयों ने छल कपट से जंगल में आग जलाकर छलनी में से चांद दिखा दिया तो वह अपनी भाभियों से बोली चला भाभी चांद निकल आया है। अर्घ दे दो। तो उसकी भाभियां बोली यह तो तेरा चांद निकला है। हमारा तो रात को निकलेगा। यह सुनकर भाईयों के कहने से उसने चांद को अरग दे दिया और खाना खाने बैठ गई। पहला टुकड़ा तोड़ा बाल निकला, जूसरा टुकड़ा तोड़ा छींक मारी, तीसरा टुकड़ा तोड़ने के लिए जैसे ही बैठी राजा के घर से बुलावा आ गया कि राजा का लड़का बीमार है जल्दी भेजो।

मां ने लड़की के पहनने के लिए तीन बार संदूक खोला तीनों बार सफेद रंग की ही साड़ी निकली। अब वह सफेद कपड़े पहनकर ही ससुराल गई और मां ले लकड़ी के पल्ले में एक सोने का सिक्का डाल दिया और बोली रास्ते में जो भी मिले पैर पड़ती जाइयो जो तुझे सुहाग की आशीष दे उसे सोने का सिक्का दे देना और पल्ले को गांठ लगा लेना। अब उसे रास्ते में जो कोई भी मिला सबके पैर पड़ी पर किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दी।

अब वह ससुराल में आई तो दरवाजे पर छोटी ननद खड़ी थी। वह उसके पैर पड़ी तो ननद बोली- सीली हो, सपूती हो, सात बेटों की मां हो, मेरे भाई का सुख देख। अब उसने सोने का सिक्का ननद को देकर पल्ले में गांठ मार ली। उसके बाद वह अंदर आई। आकर देखा की उसका पति मरा पड़ा था। अब वह उसे लेकर एक कोठरी में पड़ी रही। एक साल तक उसकी सेवा की। उसकी सास बांदी के साथ बची कुची रोटी भेज देती। इस प्रकार उसने एक साल तक अपने पति की सेवा की।

सालभर बाद करवाचौथ का व्रत आया। सारी पड़ोसनों ने नहा धोकर करवाचौथ का व्रत रखा। सबने सिर धोकर हाथों में मेहंदी लगाई। चूड़ियां पहनी। वह सब कुछ देखती रही। एक पड़ोसन ने कहा कि तू भी करवाचौथ का व्रत रख ले। तब वह बोले मैं कैसे करूं। तो वह बोली चौथ माता की कृपा से सब ठीक हो जाएगा। उसके कहने से उसने भी व्रत रख लिया। थोड़ी देर के बाद करवा बेचने वाली आई। करवे लो री करवे लो। भाईयो की प्यारी करवे लो। ऐ करवे वाली मुझे भी करवा दे जा।

वह कहने लगी मेरी दूसरी बहन आएगी वह तुझे करवा देगी। इस तरह पांच बहने आकर चली गई। पर किसी ने भी करवा नहीं दिया। फिर छठि बहन आई तो वह भी बोली की मेरी सातवी बहन आएगी तो वह तुझे करवा देगी। बस तू रास्ते में कांटे बिखेरकर रख देना। जब भी खूब चिल्लाते हुए आएगी तो उसके पैर में कांटे चुभ जाएंगे। तब तू सूई लेकर बैठ जाना और उसके पैर पकड़कर छोड़ना मत। और उसके पैर से कांटा निकाल देना।

तो वह तुझे आशीर्वाद देगी। भाई जियो, साई जियो। जब वह तुम्हे आशीर्वाद देगी तो तुम उससे करना मांग लेना। तब वह तुझे करवा देकर जाएगी। फिर तू अजमन करना जिससे तेरा पति ठीक हो जाए।

अब उसने वैसे ही किया। सारे रास्ते में कांटे बिछा दिए। जब करवे वाली करवा लेकर आई तो उसके पैरों में कांटे चुभ गए। उसके बाद उसने करवा वाली के पैर पकड़कर कांटा निकाल दिया। तो उसने आशीर्वाद दिया। तब वह बोली तूने मुझे आशीर्वाद दियाहै तो करवे भी देकर जा। तो वह बोली – तूने तो मुझे ठग लिया। यह कहकर उसने उसे करवा दे दिया। अब वह करवा लेकर उसने उजमन की तैयारी की। व्रत रखा। राजा का लड़का भी ठोक हो गया और बोला मैं बहुत सोया हूं।

तब वह बोली सोए नहीं मुझे बारह महीने हो गए आपकी सेवा करते करते। फिर उसने चौथ माता का उजमन अच्छा तरह से किया। अब उसने चौथ माता की कहानी सुनी। अब वह दोनों चौपड़ खेलने लग गए इतने में उसकी बांदी तेल की पली और गुड़ की डली लेकर आ गई। दोनों को खेलते देखकर सासू से जाकर बोली महलों में खूब रौनक है। बहू चौपड़ सार खेल रही है। इतना सुनते ही सासू देखने के लिए आई। दोनों को देखकर बहुत खुश हुई। बहु ने सासू के पैर दबाए और सासू बोली बहू सच सच बता तूने क्या किया?

उसने सारा हाल अपनी सासू को बताया। तो राजा ने सारे शहर में ढिंढोरा पिटवाया की अपने पति का सुरक्षा के लिए सभी बहने करवा चौथ का व्रत रखें। पहले करवे को अपने पिहर में जाकर उजमन करें। हे चौथ माता जिसो साहुकार की बेटी न सुहाग दियो जिसो सब न दियो, कहतां न, सुनतां न, हुंकारा भरतां न, अपना सारा परिवार न दियो।

ईक बाद बिन्दायकजी की कहानी कहव

बिन्दायकजी की कहानी

एक अंधी बुढ़िया भाई क एक बेटो और ऊँ बेटा की बा थी। ब लोग भोत गरीब थे। बुढ़िया माई रोजिना गणेशजी की पूजा करती। गणेशजी रोजिना कहता कि बुढ़िया माई कुछ मांग। बुढ़िया माई कहती म न तो मांगनो कोनी आव। गणेशजी बोलता अपना बेटा-बहू न पूछले। जद बा आपना बेटा पूछी, तो बेटो बोल्या कि माँ धन मांगले। बहू न पूछी तो बा बोली कि सासुजी पोतो मांगलो। बुढ़िया माई सोची कि ये तो दोनूं आपना मतलब की माँग है, सो पड़ोसन न जाकर पूछां। पड़ोसन न जाकर बोली की गणेशजी मनक कह कि कुछ मांग ले, सो के मांगूँ। पड़ोसन बोली कि रामारी क्यूँ तो धन माँग, क्यूं पोतो माँग, थोड़ा दिन जीवगी सो दीदा-गोड़ मांगले। घर आकर बुढ़िया माई सोची कि बेटा-बहू राजी होव जिकी भी मांगणी चाहिये। आपण का मतलब की भी मांगणी चाहिये। दूसरा दिन गणेशजी आया, बोल्या कि कुछ मांग। बुढ़िया माई बोली कि दीदा गोडादे- सोना क कटोरा म पोता न दूध पीतां देखां- अमर सुहाग दे- निरोगी काया दे-भाई, भतीजा न, सारा परिवार सुख दे – मोक्ष दे। गणेशजी बोल्या कि बुढ़िया माई, तू न म्हा ठग लिया, सब कुछ मांग लियो, पण ठीक है, तेर अइयां ही हो जासी। गणेशजी अन्तरध्यान न होगा। बुढ़िया माई क सब कुछ बड़यां ही होगो। हे गणेशजी महाराज, जिसो बुढ़िया माई न दियो, उसो सब न देइये, कहतां न, सुनतां न, आपना सारा परिवार न देइये।